सागर है कितना गहरा…
हमारे मन जैसा ही कुछ-२
थाह नहीं आसान जिसकी
मन में चलती रहती है धुक-२
जो भी गहरे पानी पैठता
उत्ताल तरंगों से जो न डरता
पा लेता है वो सच्चे मोती
अनमोल ख़ज़ाने से वो झोली भरता
मैं शांत उदात्त कोमल प्रचंड
सब को समेट लेने को तैयार हरदम
कभी किसी को तट तक पहुँचाता
कभी समेट लेता अंक के अंदर
सागर जैसा गहरा मेरा मन
थाह पाने को आतुर पल छिन
किनारे खड़े तकते रहोगे क्या
अठखेलि करो लहरों के संग
समझ सके न इसे कोई ऐसा वैसा
कोई ख़ास ही थाह ले पाता
हिम्मत दिखा बुद्धि के बल पर
गहरे जल में अपनी जगह बनाता
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