Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

रीता बधवार। (विधा : लेख) (आकाशगंगा | सम्मान पत्र)

‘आकाश गंगा’ का नाम सुनते ही मन एक अनोखी तरंग से भर बल्लियों उछलने लगता है । मन में प्रश्नों की झड़ी सी लग जाती है । आख़िर ये आकाश गंगा है क्या ?क्या यह हमारी पावन धरती पर बहने वाली भागीरथी गंगा जैसी कोई नदी तो नहीं, जिसमें अवगाहन करके या
आचमन मात्र से ही अधम से अधम प्राणी भी पाप मुक्त हो जाता है।

मन यकायक ठिठक सा जाता है और सोचने लगता है। नहीं मूर्ख ! यह तो रहस्यमयी, मनमोहिनी,इंद्रधनुषी आकाशगंगा है, जिसके अनबूझे रहस्य सुलझाने में विश्व के तमाम खगोल
शास्त्री दिन रात एक किये रहते हैं ।

इसका अपना एक रंगीला सपनीला रहस्य भरा संसार है।इसके रहस्यों की पर्त खोलने के लिये मनुष्य बंड़ी-२ दूरबीनों व प्रक्षेपास्त्रों की सहायता ले रहा है।इस काम में काफ़ी सफ़लता भी मिली है ।यह सुंदर व सर्पीले आकार वाली, धुल व धूम कणों से निर्मित एक ईश्वरीय संरचना है।इसमें टिमटिम करते सुंदर नक्षत्र,सूर्य,चाँद,सितारे,सप्तर्षि मंडल, ध्रुव तारा,उल्कापिंड व उल्का हैं ।यह अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से पूरे सौर्य मंडल को संयमित रखती है।

रात में बिस्तर पर लेटे हुये तारों से भरे आकाश को निहारते हुये मुझे अमीर ख़ुसरो की ये पंक्तिय याद आ जाती हैं

एक थाल मोती से भरा
सबके सिर पर औंधा धरा
@ रीता बधवार

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

Leave a Comment

×

Hello!

Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com

× How can I help you?