शीर्षक: थर्डजेंडर-प्रकृति का ग्रहण प्रकृति की रचना पर
ग्रहण तो पहले से ही लगा था , जब खुदा ने जमीं पर भेजा था
ना अपने हुए,ना पराये हुए, हम तो अजीब साये हुए
रब्बा,घड़ते हुए क्यूँ छोड़ा अधूरा शरीर, क्यूँ बनाई तूने हमारी ऐसी तक़दीर
जिंदगी इतनी मुश्किल भरी होगी, जहाँ पैदा हुए वहाँ पनाह ना मिलेगी
ना किसी से प्यार, ना कोई मंजिल है, ना वास्ता किसी से, छवि भी धूमिल है
मौत और मरघट का हक़ भी रात को, देख ना लें कोई हमारे शव की बारात को
योनि निर्धारण तो पूर्णता प्रकृति के हाथ में है, पीड़ा,दर्द, हेय, तिरस्कार सहना हमारे नसीब में है
किसने दिया अधिकार इस समाज को, देखें ऐसी रहस्यात्मक नज़रों से हमको
बिकते है हम,लोग बेचते है, घर से निकाल कर दल दल में फैकते है
सुधरा नहीं है अभी भी ये समाज, चूर-चूर हों कर अब उठाई हमने आवाज़
कोई बदनसीब फिर जो पैदा हों, ग्रहण उसके जीवन से कुछ तो हटा हो
दशा सुधारने को सरकार ने कुछ तो कानून बनाये, अंधकार में वो हमें प्रकाशस्तम्भ नज़र आये
पर मुश्किलें अभी भी ना हुई कम,
जिंदगी की खुशियों पर अभी भी छाया है ग्रहण
सोच बदलेंगी समाज की तो,जीवन भी बदलेगा
वरना, इन कोशिशों में तो एक और युग निकलेगा
स्वरचित
रजनी सरदाना
How useful was this post?
Click on a star to rate it!
Average rating 0 / 5. Vote count: 0
No votes so far! Be the first to rate this post.