मेहकी हुई फिज़ाएं हुवा करती थी ,
चिड़िया भी दिल से केहकहा करती थी,
बारिश भी झूम के बरसा करती थी,
सागर से भी मौजे उठा करती थी ।
अब हवाओं मेे ज़ेहरीलापन छा रहा है,
छिड़या का भी घर छिना जा रहा है,
झीलो का बारिशों को तरसा जा रहा है,
सागर में भी प्रदूषण डाला जा रहा है ।
यह नेमतें खुदा की, क्या अधर्म कर दिया है,
खुद पर ही शायद यह सितम कर दिया है,
दुनिया के हाल ने, आंखों को नम कर दिया है,
जन्नत थी ये ज़मीन, जहानम कर दिया है ।