वन प्रांत का नयनाभिराम मधु – प्रभात
रही, मैं अपलक निहार
छाई थी अलौकिक कांति चहुंओर
बाल अरुण ने थी अलसाई पलकें खोलीं
रक्ताभ हो रहा था स्याह गगन
उषा ने स्वर्णिम आंचल लहराया
प्रकृति का अंग -अंग हर्षाया
गूंज रही थी खगकुल की मधुर भैरवी तान
मधुकर की वीणा पर संगत अनमोल
मस्त पवन भी हौले-हौले रही थी डोल
चंचल चपल नन्हीं नन्हीं लाल पीली गौरैया
करने लगीं ता ता थैया
निर्झर के कल-कल करते बहते
जल में
रश्मियां स्वर्णिम जाल बिछातीं
सर-सरोवरों में कुमुदनियां मुस्कातीं
हरित पल्लवों पर ओस की बूंदें
हीरक समान झिलमिलातीं
लतिकाएं धरा को श्यामल पारिधान
पहना रहीं
जिस पर इंद्रधनुषी वन पुष्प शोभित हो रहे
ऊंचे -ऊंचे तरु भी कानों में झूम-झूम कुछ कह जाते
मैं अवाक
सोच रही यह वन है या मधुवन!!!!!!
0
1 Comment
WOW 😯 super