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मीनाक्षी जैन (UBI रूह का सफर प्रतियोगिता | उभरते सितारे (लेख))

टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज आरही थीसेनाका हेलिकोप्टेर क्रेश हो गया है पाइलट सिन्हा व कोपाइलट धानवी लापता हैं
“इंस्पेक्टर आदित्य सेना सारी कोशिश करने के बाद ही कोई डिसीजन लेती है’ कमरे में जनरल पुरोहित की आवाज़ गूँज उठी “पर मैं वहाँ जाना चाहता हूँ ” आदित्य की आवाज़ में दर्द छलक आया । “ठीक है हम आपको वहाँ भेज देंगे पर आपको सेना के नियमो का सख़्ती से पालन करना होगा ” जी ज़रूर कहते हुए आदित्य के चेहरे पर चैन की लकीर उभर आयी।

ख़ाली हाथ लौटा था वो आठ महीने हो गए थे लद्दाख से लौटे हुए एक पल भी ऐसा ना था धानवी की याद उससे अलग हुई हो ।सूरज प्रचंड हो रहा था अचानक उसका कमरा जैसे बर्फ़ से भर गया चौंक उठा था आदित्य अचानक सामने चलते टीवी की स्क्रीन पर एक दृश्य उभर आया एक झोपड़ी और उसके पास सात देवदार के पेड़ ।सिहर गया अचानक आवाज़ आयी “कब आओगे आदी ?”
दो पल बाद सब सामान्य था माँ की बात याद आ गयी जो प्रेम करते हैं वो टेलीपेथी से संदेश भेजते हैं ।मन में आते ख़यालों को झटका उसे एक आदमी की लाश का पंचनामा भरना था ।आदित्य परेशान था लाश ने हाथ पकड़ लिया था फिर धानवी की आवाज़ “कब आओगे आदी”
अब उसने फ़ैसला कर लिया वो फिर जाएगा उसे ढूँढने वो उसे याद कर रही है पर इस बार ख़ुद ।
जैसे ही बाहर निकला एक बच्चा तस्वीर ख़रीदने की ज़िद कर रहा था आदी ने उड़ती नज़र डाली तस्वीर देख कर चौंक गया जल्दी पैसे देकर तस्वीर ख़रीद ली जीप उठायी और लड्डाख की और चल दिया ।सैनिकों को देख सहम सा गया उधर एक कच्चा रास्ता दिख रहा था वोही पकड़ने की ठान ली ।कपड़े फट चुके थे बदन दुःख रहा था ऊपर पहुँचते ।फिर उसे वो जगह दिखी जहाँ हेलीकोप्टर क्रेश हुआ था ।अचानक जैसे किसीने पीछे से ज़ोर का धक्का दिया और आदी तेज़ी नीचे लुढ़कने लगा तेज़ी से खाई में गिरते हुए एक पेड़ की डाल हाथ में आ गयी आँखे बंद हो चुकी थी |”आदीऽऽऽ”आवाज़ के साथ आँख खुली सामने धानवी थी उसका हाथ थामे हुए वो जैसे हवा के पंखो पर तैर रहा था और अचानक उसने ख़ुद को लोगों से घिरा पाया ।वो अपनी भाषा में बात कर रहे थे ।चेतना आयी तो उसने चारों और देखा बर्फ़ के बीच एक झोपड़ी और सात देवदार के पेड़ अचानक उसका हाथ अपने पर्स पर गया उसने बाहर निकाला और धानवी की तस्वीर दिखायी और जैसे कोलाहल मच गया एक प्यारी सी लड़की ने उसका हाथ पकड़ लिया और झोपड़ी की तरफ़ खींच कर ले गयी “बाबु ये आपकी दुल्हन थीं ?हाँ उसने कहा फिर अचानक जैसे रोशनी भर गयी ।
झोपड़ी में सामने एक महीने का नवजात लेता था। वो यहाँ हमें बहुत खराब हालत में मिली थीं पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी सात महीने इंतज़ार किया और इस बच्चे को जन्म देकर चल बसीं ।रो रहा था आदित्य। माँ के रूप में धानवी की रूह का सफ़र ख़त्म हो चुका था और वो आदी को दे गयी थी अपना नया रूप।
स्वरचित व मौलिक

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