मां की व्यथा
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जब भी तेरा बचपन देखा
बह गई अश्रु की धार।
इस बार भी तू नहीं आया
सूना रह गया त्योहार।
अपने बापू से तूने सीखा
यौवन का है बस यही सार।
रक्त देश के लिए ना बहे
वो रक्त है सारा बेकार।
कितना जीवन, किसने देखा
कर रही हूं मैं इंतजार।
पूछ रहे सब गली के मितवा
कब आएगा तू अपने द्वार।
बहना बोली कहीं नहीं देखा
ऐसा मेरे भईया का प्यार।
माटी के लिए जान देने को
मैं भी हो गई हूं तैयार।
वह मां बेचारी क्या अब बोले
दिल पर पड़े गए हैं उसके शोले।
उसकी व्यथा ही सब कुछ बोले
मां की ममता त्रिशंकु बन डोले।
उर्मिला सिसोदिया