हरित धरा के आंचल सा
ये पथ मानो कुछ बोल रहा
हृदय प्रफुल्लित करता सा
मधुरस परिवेश में घोल रहा
यह हवा मंद सी बहने लगी
तरु भी प्रसन्न हो नाच उठे
सुगंध चहुं ओर घूलने लगी
आच्छादित मन भी बोल उठे
नव कोपल ने ली अंगड़ाई
तरुणी सी एक मुस्कान लिए
यह राह मनोरम होती चली
कितनी यादों का भान लिए
जल मग्न हुए हैं पोखर भी
कमल की कलियां खिलने को
हंसों की यूं क्रीडा देख सभी
जीवन में बहुत रस पीने को
जीवन आनंद सर्वत्र है
पर हर एक के पास नहीं
कोई गरीब पेट भर खाना
खाकर भी खुश है और
कोई अमीर करोड़ों रुपए
कमाता है बहुत खुश नहीं है,
क्यों कुछ खोने पर रोता है,
कंटक जीवन में बोता है,
जो आज है वह कल रूप नहीं,
अब छांव नहीं कल धूप नहीं
कुछ फूल भले बो जाना है
जीवन आनंद सर्वत्र है
बस महसूस इसे कर जाना है।।
@मनीषा तिवारी