कविता : आतंकवादी माँ की वेदना
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बहुत मन्नत और मुरादों के बाद तुझको पाया
पाकर तुझको मेरा ये मन था फूला न समाया ।
मानो आसमान ने दुआओं की बारिश कर दी
मातृत्व के सुख से मेरी तो जैसे झोली भर दी ।
तुझे निहारते रात दिन नही मेरी आँखें थकतीं
मेरी जैसी क़िस्मत कहाँ किसी की ,मैं सोचती
काला टीका लगाकर हर बुरी नज़र से बचाया
तेरे लिए सपने बुनती ,तेरी हँसी से घर सजाया।
उम्र के साथ साथ तेरी आदतें बिगड़ती चली गईं
बचपन वाली मासूमियत न जानें कहाँ खो गई
शिकायतों की फ़ेहरिस्त दिनोंदिन लंबी होती गई
माँ-बेटे के रिश्तों में भी अफ़सोस दूरी आती गई।
मेरी ममता की बलि चढ़ाई,दूषित मेरा प्यार किया
देशद्रोही आतंकवादी बन मेरी कोख शर्मसार किया
सब के आँगन में औलाद ..दुआएँ नहीं हुआ करतीं
बिगड़ी औलाद ज़िंदगी भर,नश्तर सी है चुभा करती।
पता नहीं कहाँ और कैसे मेरे प्यार में कमी रह गई
दिल में दहशत और आँखों में आज बस नमी रह गई
आज बेटे के नाम पर तू है सिर्फ़ एक काला धब्बा।
खून के आँसू रुलाएगा जीवन पर्यंत यह काला धब्बा।
तू एक अमिट काला धब्बा है इंसानियत के नाम पर
आज ये माँ तेरा परित्याग करती है मानवता के नाम पर
कोई माँ नहीं पालती दूध पिलाकर एक विषैले साँप को
तुझे खुद भुगतना होगा अपने जीवन के अभिशाप को ।
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित(C) भार्गवी रविन्द्र