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बचपन का सफ़र

मासूम , कोमल , सरल, मीठा और सुहावना है ये सफ़र बचपन का।
तुतलाते बोल , ठुमकती चाल , हर वक्त बस खिलौने के साथ खेलना , याद आता है वो सफ़र बचपन का ।
नाना नानी और दादा दादी का लाड़ उनकी कहानियो का मज़ा लेना , उनका अपनापन , याद आता है वो सफ़र बचपन का ।
ना कोई गम , ना कोई डर , ना फ़िकर और बेख़बर, बस मस्ती ही मस्ती और खेल ही खेल, याद आता है वो सफ़र बचपन का ।
 
माँ की लोरी सुनते हुए सोजना, पापा को घोड़ा बनाना, भाई के पीछे दौड़ना और छोटी बहन की चोटी खींचना ,याद आता है वो सफ़र बचपन का ।
बचपन में छोटी छोटी शरारत करना
पेड़ पर चढ़ना , चोरी से फल तोड़ना,
मुँह मैं मिट्टी छुपाना, पल में कट्टी होना , तो पल में दोस्ती , सुहाना और ख़ुशी से भरा , याद आता है वो सफ़र बचपन
का।
हर पल सपने देखना और बदलना कि मैं डॉक्टर बनूँगा या इंजीनियर, शायर या अभिनेता,याद आता है वो सफ़र बचपन का ।
 
होली हो या दिवाली यार दोस्तों के साथ मज़े करना और धूम मचाना वो भी क्या , पल थे , याद आता है वो सफ़र बचपन का ।
 
समय बीत जाने का गम , यार दोस्तों का साथ छूटने का ग़म बचपन की मस्ती
बस अब एक यादगार ऐहसास बन के रह गयी है हमारे दिल में, याद आता है वो सफ़र बचपन का ।
 
याद रहेगा वो सफ़र बचपन का , मीठा और सुहावना!!
याद रहेगा वो सफ़र बचपन का , मीठा और सुहावना!!
 
Jayanti Krishnan
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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