#UBI #Valentinesday
उड़ चले,प्रेम के संदेशे लिए।
“प्रेम-रंग” बिखराते,प्रेम फैलाने के लिए।
उड़ चले!”प्रेम-पखेरू”,उड़ चले।
डूबे थे जब,सब “प्रेम-रंग” में।
थे,सराबोर जब,गुलाबों की सुगन्ध में।
उड़ चले!”प्रेम-पखेरू”,डूब के “लाल-रंग”में।
हाँ!”लाल-रंग” में!!
ये कैसा प्रेम है?कोई बताए ज़रा!
जिसमें तृप्ति ही नहीं, जब तलक!!
जब तलक,भाई की गोली से,भाई ही ना मरा!
बस करो।बस करो अब!!बहुत हुई ये तुम्हारी जंग।
क्यों लड़ रहे हो!!अपने अपनों के ही संग।
तुम भी सच्चे, हम भी सच्चे।तो बताओ!
बताओ ज़रा!कौन है झूठा, जब सब हैं,”सच्चे”!!
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अरे!अरे देखो!!देखो ज़रा!!
ये कौन उतर रहा है,आकाश से,हाथों में लिए!
हाथों में लिए”प्रेम-पुष्प”,देखो।एक तुम्हारे और एक मेरे लिए!!
रंग”लाल”नहीं है, इनका!!हैं फिर भी”प्रेम-गन्ध”से सराबोर।
आओ!आओ अब बहुत हुआ,”लाल-रंग”में रंगना,मेरा भी और तुम्हारा।
ले “श्वेत पुष्प” ये प्रेम के,लग जाएं,गले,इक-दूजे के और महका दें,प्रेम से ये गुलिस्ताँ हमारा।
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अरे!अरे रोको उसे!!जा रहा है वो!!हाथों में छुपाये”प्रेम-पुष्प”,करके अंधकार घनघोर।
हाय!!ये तो स्वप्न था मेरा!मैं तो खड़ी हूँ, वहीं,जहाँ चारों ओर।
बिखरा है,”लाल-रंग” मुझे डराने के लिये।
पसरा है ये,मेरे स्वप्निल”प्रेम-दूत”की हँसी उड़ाने के लिए।
बस! बस अब तो तकते हुए,आकाश को,कर रही हूँ, प्रतीक्षा!
कब उतरेगा,मूर्त रूप ले,धरती पर,”प्रेम-दूत”मेरा,करने “प्रेम”की रक्षा!!
।।अरुणा शर्मा।।
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