याद आता है मुझे एक किस्सा ज़रा पुराना है
डरना मत दोस्तों कहानी दिलचस्प सुनाना है
भयानक काली रात थी और नानी मेरे साथ थीं
बाहर घनघोर बरसात थी मंगलवार की बात थीं
तारीख अक्टूबर 31थी अमावस सा अँधेरा
सामने के बंगले पर था चौकीदार का पहरा
साय साय की आवाज़ कर हवाएं चल रही थीं
कुंडी बंद कर हम भी बिस्तर में दुबक गयीं थी
लग रहा था डर उस रोज़ सन्नाटा गहरा छाया था
आहट हुई जैसे कोई खिड़की से झाँक गया था
हिम्मत कर थोड़ा सा दरवाज़ा खोला मैंने
बाहर निकाल गर्दन आँखों को घुमाया मैंने
होश उड़ गए मेरे था वह भयानक सा मंजर
चार पाँच दिखे भूत सामने बंगले के अंदर
सफेद कफ़न ओढ़ एक कंकाल था खड़ा
सिर पर पहने टोपी हाथ में कद्दु लिए बड़ा
बड़े बड़े मकड़ी के जाले फैले थे चारों ओर
पेड़ पर उल्टा लटक किसी ने घूरा मेरी ओर
फिर अचानक जोर से आवाज़ हँसी की आयी
तीन मंजिला हवेली भूत बंगले सी नजऱ आयी
पसीने से तरबतर मेरी रूह कांप रही थी
सिर घूम रहा था मेरा बेहोशी छा गयी थी
आँख खुली तो देखा दोस्त ठहाके लगा रहे थे
हेलोवीन पार्टी थी बंगला भूत सा सजा रहे थे
2 Comments
वाह प्रीति…. यहां तक भी पहुंच है आपकी….
बढ़िया है…..
वाह प्रीति…. यहां तक भी पहुंच है आपकी….
बढ़िया है…..