बेजान से दिल में उल्लास की उमंग है जगाना
बुझे मन में मधुर धुन से सरगम है गुनगुनाना
एक बार फिर बहती हवाओ का रुख बदलना है
नए दौर में नई उम्मीद से , ये उत्सव मनाना है
रिश्तों में जमी चिकनाई घिस कर करनी है साफ़
किसी से मांगनी माफ़ी किसी को करना है माफ़
हँसी से रोशनी कर गम के निराशा को हराना है
नाराज़गी की धूल झटकार आशादीप जलाना है
नए विचारों की सरल रंगोली बनाऊँगी मैं
कुछ इस तरह इस बार उत्सव मनाऊंगी मैं
महकाऊँगी प्रफुल्लित हो मन का कोना कोना
पोछ आँसुओ को अब जीवन है जगमगाना
संकुचित मानसिकता को बेच दूंगी रद्दी के भाव औऱ खरीदूंगी आज़ाद खयालात,निर्मल स्वभाव
जात पात और भेदभाव की लड़ों को फैला कर
रख दूंगी नफ़रत से भरें सभी पटाखें जलाकर
हरे केसरी रंग से बने प्रेम का कंदील लगाउंगी
इस दीवाली दोस्तों के साथ खूब धूम मचाऊंगी
दीवाली मिलन समारोह बड़े धूमधाम से होगा
जिसमें आश्रम का हर बच्चा बूढा शामिल होगा
मिलकर हम सब उड़ाएंगे रंगीन आतिशबाजियां
मिटा देंगेअमावस का अंधेरा चला के फुलझड़ियाँ
लिखूंगी चैन -ओ – अमन की आयत कुछ ऐसे
बिखरेंगी खुशियाँ हर दिन एक उत्सव हो जैसे
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