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प्रमोद मूंधड़ा (UBI सपनों की उड़ान प्रतियोगिता | सम्मान पत्र )

रंगों की पहचान नहीं पर
इंद्रधनुष के चित्र बनाये
कैसे-कैसे स्वप्न सजाये
स्वप्नों में ही महल बनाये ।

स्वप्न में तेरा महल दूर है
इस चिंता में तू उदास है
कभी तो होगा महल पास में
कब से तेरी यही आस है ।

महल की आस तुझे भरमाये
कौन है तू ये सुध बिसराये
मृग मरीचिका की तलाश में
गिरे,थके,खुद को तड़पाये ।
बेसुध है तू , सपना है ये
बंद आंख तू जान न पाये
ऐसी गहन नींद है तेरी
कैसे कोई तुझे जगाये ।

जब कोई पुकार दे तुझको
करवट लेकर फिर सो जाये
भरम नींद का टूट न पाये
मर्म से तू वंचित रह जाये ।

आंख खुले तब जान पड़े ये
सपना था तब जान पड़े ये ।
अवसर चूका, गयी जिंदगी
सोच सोच के तू पछताये ।।

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