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#1
प्रकृति
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प्रकृति अपने आप अनुपमा अनन्या
है छटा उसकी निराला
बारह महीने में तेरह पहनावा
पहन के
लगती अनूठा, अनोखा
छः ऋतुओं में कभी रानी कभी राजा
एक नई कहानी रोज़ लिखा जाता
प्रकृति के गोद में कहीं द्वितीय स्वर्ग मिलेगा
प्रकृति की तांडव कहां
पाताल में छोड़ आएगा
भू-तल से कहां मिलता अमृत जल धारा
कहां निकलता है आग का गोला
प्रकृति के खेल या कुदरत का करिश्मा
अलग मौसम कहां अलग अंदाज कहां
ढेर सारे मनमानी मस्ती मौज
और क्या?
दूर वादियों में कहीं मां के लोरी सुनना
फूलों की बगिया में तितली संग दिल्लगी लगाना
भूमि भूमि में अन्तर
बीहड़ कहां समतल कहां
बारिश के मोती की बूंद कहां
मरूस्थल के सोने की रेतकण कहां
तु मूल नियामक
करता ,धरता
तु सृष्टि रचयिता
कण कण में ओंकार ध्वनि गुजंता
संचालन शक्ति तुझ में रखा
तेरी रचना की मैं
तुझसे नियंत्रित हुआ
स्व रचित
अमीता दाश 🙏