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अद्भुत अस्त्र-शस्त्र हैं ये।
बिन बहाये,रक्त की एक बूंद भी।
कर सकती हैं, घायल ये।
डुबा-डुबा कर ज़िन्दा रखने का हुनर भी।
बखूबी जानती हैं ये।
निराला है, संसार इनका।
भीतर इनके सारा जगत समाए।
पर,एक कोने में समा जाती हैं ये।
“पुस्तक-दिवस” की हार्दिक शुभकामनाएं।
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अरूणा शर्मा
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