दिलबर की याद में लिखी थी जो मैंने दिल की हर बात
ग़म और ख़ुशी में जब ज़ाहिर हुए थे दिल के कुछ जज़्बात
हाँ कलम से ही अपनी किया था मैंने अपना हर इकरार
और लवज़ों का आशियाना बन गया था तब मेरा पहला प्यार
जब टूटा था दिल ना जाने अलहड़पन में कितनी बार
और हर बार महसूस होता कि वही था मेरा जन्मों-जन्मांतर का प्यार
टूटे हुए अरमानों की लिखती थी मैं जब भी नई दास्तान
मेरा पहला प्यार क़तई नहीं था इन सब बातों से अनजान
मिलने की और मिलकर बिछड़ने की अनगिनत कहानियाँ
यौवन की हर एक भूल और बचपन की सारी नादानियाँ
महज़ चंद यादें थी जो कभी हवा का झौंका बन कर गुज़र जाती थी
और कभी बदन में मेरे एक सिहरन बन दौड़ जाती थी
नन्ही सी उँगलियों को पकड़ कर जब छलके थे आँसू मेरी आँखों से
गुनगुनाती थी लोरियाँ झुलाकर उसको मैं अपनी बाहों में
एक अटूट रिश्ते का तब हो गया था आग़ाज़
अनकहे शब्दों का डायरी के पन्नों में तब बयाँ हुआ था एक अलग अन्दाज़
मीठी नोक -झोंक और जिगरी यार दोस्तों से हुई तकरार
राह तकती नज़रें और कभी ना ख़त्म होने वाला इंतेज़ार
गवाह थी मेरी डायरी ज़िंदगी के हर उतार-चढ़ाव से
क्यूँकि लिखते थे अपने दिल की बात तब हम उसमें बड़े चाव से
तन्हाई भरे आलम में जब कोई नहीं होता था मेरे साथ
और आँखों से मेरे निरंतर बरसता था ना थमने वाला सैलाब
डायरी के पन्नों को पलटती तो आ जाती थी यादों की बहार
क्यूँकि उसके हर लव्ज़ में ही तो तो बसा था मेरा पहला प्यार
निशा टंडन