#यूबीआई
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# कहानी १
#५
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नज़र बुरा!!!!!
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दुःख का परिभाषा क्या है कोई मुझे बताएगा।बेटे खोने का दर्द से और कोई बड़ा दर्द है भला।चार साल पहले बड़े बेटे का दुर्घटना में मौत हो गई।आजतक विश्वास नहीं कर पा रही हूं सच में छोड़ के चला गया। नहीं बाहर कहीं पढ़ने गया है।चार साल बाद कल कोई मिले ।मिले तो क्या बोले मेरे बेटे के जाने का गम उन्हें पागल कर दिया।चार साल हो गया वो डिप्रेशन का दवाई ले रहे हैं।मेरे तो पैरों तले जमीन खिसक गई।वो औरत मेरी छत पे मेरे बगिचे पे उसे महसूस करती थी। मेरे बगिचे में एक आम का पेड़ था।उसे देख कर अंधेरे में उन्हें डर लगता था। अंधेरे में किस को डर नहीं लगता है कहो भला।अभी दो साल हो गया मैंने यहां मेरे अपने घर में रह रही हूं कहीं कुछ भी नहीं देखा।रात रात भर छत पर , आंगन में घूमती रहती हूं।सच में छोड़कर चला गया
एक बार झलक तो दिखा दे बेटा। मुझे दिखाई तो दूर आंखों से पानी सुखा दिया।वो महिला के साथ और एक महिला जुड़ गई। दोनों बोले उनको इस उम्र में भी नजर लग जाता है।नज़र वाले देह उनके।करोना समय था।वेपार नौकरी सब ठप्प पड़ गया। मैं भी जानती हूं उनके बहुत आर्थिक समस्या। बहुत समस्या उनके।बहुत पहले उनका तबीयत ठीक नहीं रहता था भी।आज वो मेरे बेटे के अचानक मौत के कारण दिमाग में कुछ घुसा दिया जो निकलता नहीं।वो डिप्रेशन में चली गई।
क्या पता ये भी कहानी बना रहे होंगे मेरे बेटे उनके शरीर में आता होगा। ऐसा दुनिया में क्यों होता है।जो दुःख के पाहाडो में घिरा हुआ रहता है उसी को ताना सुनना पड़ता है। मैं मर जाती कम से कम ये सुनने को तो न मिलता। कुछ बुरा किया था पिछले जन्म में जो बेटे की मौत के दंड के साथ ये सब सुनना पड़ता है। बातों बातों में भूत का डर कह दिया।ये बोल के चले गए
भाभी दुःख नहीं करना। उसके पास आयु नहीं था। मुझे डर लगता था। मेरे घरवालों को नहीं।सब मनके बहम।आपके लड़का बहुत सुंदर था तो दिमाग से ये बात जाता नहीं।जो गया वो गया। हिम्मत रखो। रात भर सोचती रही जीवन में क्या कम दुःख है और सुना रहे हैं।ये सोचो तुम्हारे साथ तुम्हारे बच्चे हैं। मेरा तो चला गया।कभी न देख पाऊंगी उसको फिर भी कहोगे अपना तो रख नहीं पाई दूसरों पर नजर डाल रही है।बाहरे दुनिया के लोग!!!!!!!
अमीता दाश
स्व रचित