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डॉ शैलबाला दाश ( समय प्रतियोगिता | युगान्तकारी रचना हेतू प्रशंसा पत्र )

समय समय पर समय को सब अपना बना लेते है।
अपना बताते हैं, अपना बताने से नहीं एतरातें हैं।
सच में क्या समय अपना है!
समय तो मुठ्ठी से फीसलता एक माया,छला हुआ एक सपना है।
समय अपना बनता है तब,जब बहुत अच्छा है या बहुत ही बुरा।
समय के तराजू पर अगर कोई उतरता है खरा।
समय को गले लगानेसे समय अटकता नहीं।
समय को अपना बनाने की चक्कर में कोई भटक जाता है कहीं।
समय का कांटा चुभता है,गले में अटक जाता है युहीं।
कोई बताता समय गलत है, किसके लिए समय होता है सही।
समय है अनंत,समय है महाकाल।
समय है रुद्र, प्रचण्ड भूचाल।
समय है जवाब,समय है सवाल।
बनाता है इतिहास,पलट देता है खगोल।
कितने राजाओंको रंक बतने वह देखा।
कितने सल्तनत को वह उखाड़ कर फेंका।
कितने लंका को वह आग में झोंका।
कितने ट्रय को चुटकी से फुंका।
कितने को गिरने या गिराने वह देखा।
जड़ों से उजाड़ कर कितने को फेंका।
गिरे हुए कितनों को उठते हुए देखा।
समय है,महाकाल,विश्व पटल के भाल पर यह है त्रिपुण्डक रेखा।
समय किसका न सगा है,नहीं इतना भी पराया।
समय उसी का साथ देता है,समय पर समय को जो अपना बनाया।

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