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तनाव

हर हृदय परेशां हैं, हर मन में तनाव और निराशा हैं,
आखिर क्यों?

क्या हम खोने-पाने की होड़ में ख़ुद को खो रहे हैं?
हमारी महत्वकांक्षी अपेक्षाएं अथवा कुछ पाने की लालसा?
सफलता,सुख,नाम, शोहरत, पैसा अथवा प्रेम?
पाने की लालसा में ही छिपा हैं- खोने का भय और विषाद।
तो क्यों हम कुछ पाने के झूठे ख़्वाब बुनकर स्वयं को छले!
बेहतर हैं कुछ देने पर विचार करें, खुशियाँ बांटते रहें,
और शायद तब वास्तविक सुख और प्रेम प्राप्त हो!
और फिर भी नाकामयाब हुए तो निराशा क्यों हो?
क्या कभी एक ही स्थिति सदा बनी रहतीं हैं?
ये वक़्त भी गुज़रेगा, उषा की लालिमा भी फिर फैलेगी।
बस धैर्य धारण कर अपने विचारों को साझा कर देना,
जो भी महसूस करते हो ; बेहिचक बोल देना,
तुम भी जानते हो, तुम्हें किसके सामने दिल खोलना हैं।
तुम जी भरकर बोल लेना, अकेले न घुटते रहना,
तुम जी भरकर लिख लेना, रो लेना,हल्के हो जाना।
कि टूटे दिल भी फिर जुड़ जाते हैं, उम्मीद का दामन ना छोड़ना,
ये जीवन एक अनमोल तोहफा हैं, इसे हर हाल में जीना हैं।
न बिते कल के मलाल में, न आने वाले कल की फ़िक्र में,
ये जीवन आज और अभी में हैं, खुल कर इसे जीना हैं।

*जूही माला*

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