क्यों ना गाऐं गीत?
रुंधे ये गले नहीं,
रच लेंगे संगीत,
सुर अभी ढ़ले नहीं।
फिर महकेगी उपवन में,
खुशी भोर के तारे की।
फिर चहकेगी मधुर हंसी,
भवरों के गुंजारे की।
फिर होगें गुलज़ार,
बाग ये जले नहीं।
अपने दोनों हाथों पे,
अडिग भरोसा मेरा है।
बदलेगी दुनिया मेरी,
स्वप्न सजीवन मेरा है।
रहे निरर्थक स्वप्न,
अगर वो चले नहीं।
स्थायी कुछ नहीं जहाँ में,
ये फ़साद भी फ़ानी है,
आज पास है जो तेरे,
दौलत कल छिन जानी है।
कर्म रहेंगे साथ,
और कुछ भले नहीं।
शब्दों को भी स्वर देकर,
अर्थ बदलना आता है,
राग सुरीले, मधुर ध्वनि ,
साज़ सज़ाना आता है।
अनुशासित गायकी,
गीत मनचले नहीं ।
जीवन का आनन्द तभी,
जब संघर्ष रसीले हों,
नया युद्ध, हर नए रोज़,
जय के गीत नवेले हों।
जब तक जीवन शेष,
मरे हौसले नहीं।
-अमित खरे
-स्वरचित