Generic selectors
Exact matches only
Search in title
Search in content
Post Type Selectors

डॉ. श्वेता प्रकाश कुकरेजा। (विधा : लघुकथा) (काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | प्रशंसा पत्र)

चलो बच्चों फिर से दोहराते है..
“काल करे सो आज कर
आज करे सो अब”
जब भी कबीरदास का ये दोहा पढ़ाती हूँ,मन आत्मग्लानि से भर जाता है और चुटकी भी याद आ जाती है। उस
दिन ही चुटकी के पास जाती,काश कल का इंतज़ार न करती।

नई नई नौकरी लगी थी,सरकारी स्कूल बाँदा में।नई नौकरी, नया जोश ,नई उमंग कि साक्षरता का दीप हर घर
में रोशन करूँगी।बस्ती के कुछ ही बच्चे पढ़ने आते थे।एक दिन मैं वहाँ गई और बस्तीवालों को समझाया कि
बच्चों को स्कूल भेजें।

“मास्टरनीजी हमाये बच्चा चले जाहे तो काम को करहे?कम से कम घर को तना मना काम जे मौडा मौडी कर
देत है।“एक औरत ने अपनी दुविधा बताई।

“सिर्फ तीन घंटे के लिए आना है।खाना भी इन्हें वही मिलेगा और किताबें, बस्ता सब मुफ्त”मैंने एक सेल्स वुमन
की भूमिका निभाते हुए कहा।“क्या कहा….खाना…पेट भर के मिलेगा न….चलिए मैं चलती हूँ।“बड़ी बड़ी आंखों
वाली,मैली सी फ्रॉक पहने,लाल फीते चोटी में बाँधे एक लड़की मेरे पास आई।चुटकी नाम था उसका,दस साल की
थी पर बातें बड़ी बड़ी।खाने की लालच में रोज़ विद्यालय आती और आस पास के बच्चो को भी ले आती।साँवली
सी थी पर गज़ब का आकर्षण था उसमें।हर पाठ, पहाड़ा, गिनती अपनी नाम की तरह चुटकियों में कंठस्थ कर
लेती थी।

मैं उसको हमेशा समझाती,”चुटकी पढ़ाई हमें पंख देती है उड़ने के लिए,हम अपने सारे सपने पूरे कर सकते है
अगर पढ़े लिखे हो तो।“इस पर वो कहती ,”सच मास्टरनीजी!मैं भी पट पट अंग्रेज़ी बोलूंगी, अच्छे अच्छे कपड़े
पहनूँगी,हवाई जहाज में बैठूंगी?”

उसके चेहरे के भाव देख मैं खूब हँसती और कहती,”हाँ चुटकी मैं हूँ न खूब पढ़ाऊंगी तुमको,कभी साथ नही
छोडूंगी तुम्हारा।“

“सच…कभी साथ नही छोड़ोगी न?”वह पलट कर जरूर पूछती।
उस दिन विद्यालय में निरीक्षण था,सुबह से ही मैं तैयारी में लगी हुई थी।तभी चुटकी रोते हुई आयी,”बाबा मुझे

दूसरे गांव ले जा रहे है,ब्याह करने मेरा।मुझे पढ़ना है,पर वह नही सुनते।आप चलो न मास्टरनीजी।“वो मुझसे
लिपट गयी।“अर्रे ऐसे कैसे,यह गैरकानूनी है।तुम्हारे बाबा ऐसा नहीं कर सकते।अभी तो यहाँ काम है,निरीक्षण के
बाद आती हूँ तुम्हारे घर ।तुम चिंता न करना।“चुप कराते हुए मैंने कहा।

“आप आओगी न,साथ नही छोड़ोगी न?”हर बार की तरह उसने पूछा और मैंने भी हामी भर दी।
सारा दिन व्यस्तता में गुज़र गया और मुझे घर आते आते देर हो चुकी थी।घर पहुँच कर याद आया कि चुटकी
के घर जाना था फिर सोचा थकान लग रही है सो कल चली जाऊँगी।दूसरे दिन भी सोचा कि विद्यालय का
कार्य निपटा फिर चली जाऊंगी।शाम को जब उसके घर पहुँची तो घर पर ताला देख मेरा माथा ठनका।मैंने
उसकी पड़ोसी से चुटकी के बारे में पूछा।

“काल पूरे दिना बा मौडी रोत राई कि रुक जाओ हमाई मास्टरनीजी आबे बाली है।खूब मारो ऊके बाबा ने पर
चुटकी तुमायी बाट देखत रई।रोत रोत आज सबेरे ले गए चुटकी खा।आप काये नाई आयी कल, आती तो मॉडी
बच जाती।“

ये शब्द मुझे अंदर तक धिक्कार रहे थे।शायद मेरी थकान ने किसी के हिस्से का आसमान छीन लिया।शायद मैं
कल की राह न देखती तो चुटकी को अपने सपने पूरे करने का मौका मिल जाता।आज हज़ारो बच्चे पढ़ा चुकी
हूँ पर चुटकी को न पढ़ा पाने का मलाल आज भी है।
©डॉ. श्वेता प्रकाश कुकरेजा

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

Leave a Comment

×

Hello!

Click on our representatives below to chat on WhatsApp or send us an email to ubi.unitedbyink@gmail.com

× How can I help you?