कहां है वह खिलतीं हरियाली,
चहकते चिड़ियां,महकती कली!
कहां है वह वादियां निराली!
जहां हम सबके बचपन पलीं।
पिते थे नदियों के अमृत सदियों से।
मिलते थे संजीवनी बाग बगियों से।
अब यह बिषैला सांसें आये कहां से!
सुरज से इतने आग आज क्यों बरसे!
मन फिर वही हरियाली को तरसे।
अब बस भी करो मानव ,थोड़ी सी रुक जाओ।
हरियाली को और हाथ न लगाओ।
बिकास के नाम पर बिनाश को चुनने की गलती,
ले आयेगी सर्बनाश, प्राणी,प्रकृति होंगी इति।
आयें बचाएं वादियां, नदियां।
हरियाली खेत,खलिहानियां।
आओ और भी पेड़ लगाएं।
पृथ्वी को बंजर होने से बचाएं।
गंदगी न मन में,न तन में।
स्वच्छ पर्यावरण वन ,खेत, भवन,उपवन में।
शपथ लें,कि एक स्वच्छ ,सुस्थ पृथ्वी बनाएं।
अस्वस्थ पृथ्वी को कल के लिए दुरुस्त,तन्दुरस्त बनाएं।
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