सवेरा था
मगर हर तरफ अँधियारा
दीपक की लौ से
जगमगा उठा जग सारा
तिनके ने सीने को भेदा
आग लगा दी चिंगारी ने
आसमान से तारे टूटे
कांटे उग गए क्यारी में
साँसों ने भी नाता तोडा
साये ने भी तन को छोड़ा
उड़ रहे थे बीच गगन में
हवाओं ने रूख को मोड़ा
पत्थर पर उठ गई लक़ीर
मन की विपदा मन को चीर
लहू भी सफ़ेद हो गया
छलनी कर गए टूटे तीर
उजियारा भी खुद से हारा
सवेरा था
मगर हर तरफ अँधियारा
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