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डॉ. आराधना सिंह बुंदेला । (विधा : कविता) (मेरा देश मेरा अभिमान | सम्मान पत्र)

मेरे देश की माटी, तेरे चरण पखारूँ , करूँ तेरा सम्मान ,
तू ही तो है अस्तित्व मेरा, और तू ही मेरा अभिमान।

वैभवशाली अतीत तुम्हारा, हम करते गौरव गान ,
धरती ये राम-कृष्ण की , और गाथा गाएँ कबीर और रसखान।

कहीं पर मंदिर , कहीं शिवाले , हम पढ़ते गीता और क़ुरान ,
कहीं पर बाज़े शंख – नगाड़े , तो कहीं गूंजे अज़ान।

कहीं प्रार्थना हो गिरिजाघर में , हो ईशु का आव्हान ।
कहीं पढ़ें मीठी गुरुबानी , कर गुरुनानक का ध्यान ।

ऐसा मेरा देश है , जैसे हो सतरंगी सपनों का जहान ,
हर रंग यहाँ , दूजे रंग में मिले ,और दे सुंदर संज्ञान।

जब जब नफ़रतों कि आँधी ने, उड़ाया लोगों का शामियाना ,
तब तब आपसी प्यार की थपकियों ने,फिर बसाया सबका आशियाना।

हिंदू , मुसलिम, सिक्ख और ईसाई , आपस में है भाई भाई ,
यही सुनकर बड़े हुए हम, और सबने भारतीय होने की रीत निभाई ।

दीवाली और राखी के कपड़े ,यहाँ फ़िरदौस भाई सिलते ,
ईद के लिए सेवैयाँ और खीर , हल्दीराम में मिलते ।

विदेशों में जाकर भी हम , ना भूले अपने देश की ऊँची शान ,
सबको हमने सिखलाया, भारतीय संस्कृति का दर्शन और ज्ञान ।

मेरा देश सबसे आगे है , करें सब इसका गुणगान ,
है संसार के माथे का सितारा , मेरा देश मेरा अभिमान ।

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित
@डॉ आराधना सिंह बुंदेला

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