मेरा पहला प्यार, जैसे छाई ,हर ओर बहार ,
एक दिन अचानक ही मिला,ख़त्म हुआ इंतज़ार ।
अनदेखा, अनजाना और धुँधला सा एक सपना ,
अजनबी था ; पर देखते ही , लगा वो अपना ।
कभी लगा , क्या ये ही है वो , मेरे लिए ,
ताना बाना बुना था ,मेरे मन ने जिसके लिए ।
जब देखा उसको पहली बार,लगा वो सीधा सा ,
बनावटी ना थी बातें उसकी,और मन था सच्चा सा ।
मन के धागे ऐसे उलझे ,कि कभी खुल ना पाए,
मोह जाल में ऐसे बंध गए,कभी निकल ना पाए ।
कहते हैं कि जोड़ियाँ तो ,स्वर्ग से बन कर आती हैं,
और धरती पर बस उनको,क़िस्मत मिलाने आती है।
क़िस्मत से तुम हमको मिले हो,वरना हम खो जाते,
तुम थे दूर के ढोल सुहावने ,और हम पास के शहर में रहते ।
फिर भी मिल गए जादू से तुम , लाख ज़माना रोके ,
जिसका जहां पर लेख लिखा था,वहीं पर आ कर अटके।
बहुत मुश्किल से ,पहले प्यार की दास्तान, लिखी जाती है ।
ये ऐसे जज़्बातों की कहानी है,कि बोली ना जाती है ।
उनसे भी जब पूछी किसी ने , पहले प्यार की दास्तान ।
वो चुप रहे और मुस्कुरा कर,लगे देखने आसमान ।
आसमान हो या ज़मीन,बस एक ही चेहरा दिखता है ,
पहला प्यार होता कुछ ऐसा , जैसे सावन के अंधे को बस हरा ही हरा दिखता है ।
मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
डॉ आराधना सिंह बुंदेला
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