रूह का सफ़र
पहन कर चोला इस शरीर का
निकल पड़ी हैं रूह सफ़र पर
मोह न कर इस सुंदर तनु का
हैं यह तो कूछ पलों का घर
रमकर इस मनमोहिनी में
न रुकी है न रूकेगी यह बंजारन
भटकेगी मोक्ष की खोज में
निरंतर निर्भय चलती यह बैरन
पाप पुण्य की अस्थिर हैं तुला
कर्मो का हिसाब जन्मो से चला
मोक्ष से मिलन को अधीर अग्रसर
मोह से मोक्ष तक रूह का सफ़र
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