तन पर भस्म रमा कर, बालों की फिर जटा बनाई।
आह्वान कर संगीत का, शिव चले ब्याहने पार्वती माई।।
कण – कण नृत्य मग्न हुआ, शंखनाद बजने लगे।
मंजिरी बनाई सीपियों ने , वीणा के सुर सजने लगे।
हिम के ऊँच शिखर पर, हवा ने जब दौड़ लगाई।
सुखे बाँस बज उठे, ज्यों कृष्ण ने बाँसुरी बजाई।
तन पर भस्म रमा कर, बालों की फिर जटा बनाई।
आह्वान कर संगीत का, शिव चले ब्याहने पार्वती माई।।
बादल मेघ लेकर आए, रिमझिम-रिमझिम बरसने लगे।
ढोलक ने जब थाप सजाई, गाय बछड़े रम्भाने लगे।
पतझड़ ऋतु झुम कर आई, आत्ममुग्ध कला दिखाई।
सुखे पत्ते मचल उठे, चरमर – चरमर धुन बजाई।
तन पर भस्म रमा कर, बालों की फिर जटा बनाई।
आह्वान कर संगीत का, शिव चले ब्याहने पार्वती माई।।
हाथी, कीड़ी, शेर, घोड़ा, धरालोक का कुचा – कुचा।
स्वर्गलोक में आनंद छाया, प्रीत का हार सब से सच्चा।
नवजात बच्चे ने भी, अपनी प्यारी किलकारी लगाई।
चंदनवन पावन हुआ, धुन जब बच्चे की दी सुनाई।
तन पर भस्म रमा कर, बालों की फिर जटा बनाई।
आह्वान कर संगीत का, शिव चले ब्याहने पार्वती माई।।
आभा….