लेट के चंदन की चिता पर भी क्या पाओगे
आस्तियां तक तो अपनी तुम यहाँ छोड़ जाओगे ।
लपटे आग की उठती है, खाक होती है हर लकड़ी
बन के राख हवा के साथ न जाने कहाँ उड़ जाओगे।
लेट के चंदन की चिता पर भी क्या पाओगे।
जीत लो जहाँ चाहे सिकंदर जैसे
काम दो गज़ ज़मीन ही लाओगे।
लेट के चंदन की चिता पर भी क्या पाओगे।
थाल सजा हो पकवानो से हजा़र
पर लुकमा तुम अपने नाम का ही खाओगो।
लेट के चंदन की चिता पर भी क्या पाओगे।
Hamida
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