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कविता : भरोसा
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तु चल बसा दिलासा दिए
मैं रह गई भरोसा समेटे
मिलाथा हीरा कंकड़ समझ बैठे
मिलाथा दायाद नालायक सोचे
अमृत कलश हाथ में था
जहर खुद पी लिए
मिलाथा खजाना ना समझी कर दिए
अब पश्चाताप करने से क्या?
जब चिड़िया घोंसला छोड़ दिया
सांस रुकने तक इस बोझिल एहसास के साथ जीना पड़ेगा
आग किसको, किसे देना था
स्व रचित
अमीता दाश 🙏
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1 Comments on “कविता : भरोसा”
Thank you so much madam 💕❤️