एक छोटी सी सीख यादों के “गुल्लक” से।
१९७०–७१ की बात है तेलंगाना
एजीटेशन अपने चरम पर था ।
१० महीनों से कर्फ्यू चल रहा था।
पूरा ही एकेडमिक वर्ष यूनिवर्सिटी
ने कैंसिल कर दिया था ।आजकल
जैसे लाक डाउन ने हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर एक प्रश्न चिन्ह
लगा दिया है वैसा ही उन दिनों भी
हुआ था । हमारे पिताजी का इलेक्ट्रॉनिक्स का बिजनेस था-और उस हड़ताल की भेंट चढ़ गया था ।
पिताजी को कोई आवश्यक बिल भरना था मां ने उनको समझाया
बच्चों के “गुल्लक ” में इतने पैसे
अवश्य निकल आएंगे,बचत आड़े
वक्त में काम आए इसलिए ही की
जाती है ।हम सब भाई बहनों ने अपने गुल्लक तोड़ दिए जमा रकम
गिनना शुरू किया सभी में होड़ लगी थी कि किसके पैसे ज्यादा है।
इतने में मेरी सबसे छोटी बहन जो उस समय मुश्किल से ६-८ साल की थी एक रुपए का सिक्का अपने
हाथ में छुपा लिया,ऐसा करते हुए
पिताजी ने देख लिया,अगले ही पल एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा।हम सब सकते में आ
गये किसी को पता ही नहीं चला कि क्या हुआ ? बहन बुरी तरह
रोने लगी उसे गले से लगा कर पूछा
क्या हुआ ,तुमने क्या किया,बहन ने बताया कि एक रुपए का सिक्का
हाथ में छुपा लिया था ये सोचकर कि मेरे सारे पैसे चले जाएंगे।
पिताजी के एक थप्पड़ ने
उस दिन हम सबको जो ईमानदारी
का पाठ पढ़ाया था, यादों के “गुल्लक” में सदा ऊपर रहा।उस
जमाने में बच्चे एक साथ एक ही
उदाहरण से कितना कुछ सीख जाते थे ।
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One Comment on “कमला मुलानी। (विधा : लघु-कथा) (गुल्लक | प्रशंसा-पत्र)”
Lovely write up!