सावन की पुकार
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आषाढ मास के प्रथम दिवस को
तृषित धरा चित्कार उठी।
हे पयोद! तुम कहाँ छुपे हो,
आकर कष्ट मिटाओ तुम।
देखो तिनका तिनका प्यासा
दुःखी किसान कराह उठा!
धरती का श्रृंगार तुम्हीं हो,
प्राणी का आधार तुम्हीं हो।
सुनकर करुण पुकार धरा की
झुक गयी घटाएं धरा तक।
लांघ क्षितिज की सीमा को
उमड़ घुमड़ कर आए मेघ।
झूम झूम कर बरसे बादल
गरज गरज कर बरसे मेघ।
चपला भी संग चमक रही है
बंजर धरती महक उठी।
कोयल मोर पपीहा गाये
सरवर में दादुर टर्राए।
हुलस रही है दसों दिशाएं
प्यासी धरती चहक उठी
खेत खलिहान नदी नालो पर
घुमड घुमड़ कर बरसे मेघ।
फहर रही है श्याम पताका
मेघों की विस्तृत अम्बर में।
नाम सार्थक किया जलद ने
तृप्त धरा मुस्काय उठी।
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