“छोटी छोटी खुशियाँ”
उठ सबेरे ही दाने की खातिर
नन्ही गौरैयों का शोर मचाना
तनिक देर कर दो जाने में तो
टैरेस पर पौधों का मुंह लटकाना
देख के चलना मुश्किल कर देना
सड़क के टॉमी का पूंछ हिलाना
दो बार बजा दो गेट का खटका तो
भोला की बछिया का दौड़ के आना
सच कहूं ….
ढलती उम्र की बेला में जब सबको
आपकी अनुपस्थिति कम ही सालती है
जब पार्टियों और क्लबों की चकाचौंध
आपके सुकून में खलल सी डालती है
जब पैसों से खरीदे आराम और खुशियां
होकर भी कोई कमी सी मलालती है
तब इन बेजुबानों की स्नेहिल पुकारें
पल्लवों की ताज़ा ओस से नम बहारें
सोंधे पके दूध की कुल्लड़ वाली चाय
चकाचौंध से दूर किसी टीस्टॉल के किनारे
दे देती है एक मनचाहा सा सुकून
जीवन में सच्ची उमंग का पुट डालती है
बस खोजभर ले मन बावरा ये बेमोल खुशियां
देखो खुद बाहें पसारे आपको पुकारती है
– इरा
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