जिस धरती माँ की गोद में जन्मा,
क्यों भूल गया उसका सम्मान ,
वसुधा झुलस – झुलसकर बोले,
अब तो बस कर दे इंसान ।
चारों ओर मची हलचल है ,
जंगल में भीषण आग लगी है ,
प्रदूषित वायु , प्रदूषित जल है ,
समस्त वातावरण ही विषमय है ।
नैसर्गिकता और उरवर्ता को ,
नष्ट करता तूँ निष्ठुर बनकर,,
सृष्टि की अनुपम रचना को ,
विध्वंस करता तूँ कंटक बनकर।
औद्यौगिक क्रांति का देख दृश्य यह,
धरती माता करे आक्रंदन,
अनुभव कर इस धरा का स्पंदन ,
मर्यादा का न करो उल्लंघन।
देख निर्दयता मानव की ,
यह धरती माता रोती होगी ,
इस भीषण संहार की आखिर ,
कोई तो सीमा होगी।
गर मिट गया वजूद मेरा ,
तो अस्तित्व तेरा भी मिट जाएगा ,
ऐ मानव तेरी उच्छृखंलता से ,
यह चमन , ध्वस्त हो जाएगा ।
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