भीगी पलकें थी
क्यूंकि विदाई की घडी थी
बाबुल का घर छोड़
पिया संग मैं चली थी ।
वोह खुशनुमा माहौल था
हर तरफ खुशियों का ढोल था,
माँ का आँचल दूर जा रहा था
बाबुल का अंगना पीछे छूटे जा रहा था ।
उस दिन भीगी थी पलकें एक माँ की
जिसने अपने खून से मुझे सींचा था
भीगी थी पलकें एक पिता की
जिसने बड़े नाज़ों से अपनी बिटिया को पाला था ।
उस दिन वोह भाई भी
जिससे हमेशा नोंक-झोंक होती थी
विदाई की उस घडी में
उसकी भी पलकें भीगी थी ।
क्यूंकि बाबुल का घर छोड़,
पिया संग मैं चली थी ।।
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