रात सरकता शिशु रवि और,
दिन में तपता भास्कर
सांझ चमकते तारे हैं और
रात रानी मेहताब है
बस यहां समय का राज है
मर्यादा पुरुषोत्तम भी तो
राजा के अधिकारी थे
वैभव और सुख छोड़ भवन का
पर झेला वनवास था
वहां समय का राज था
हरिश्चंद्र ने डोम की सेवा
बलि राजा को पाताल मिला
पांडव और द्रौपदी का भी
अंत समय नासाज था
वहां समय का राज था
वर्तमान में जिए न मानुष
भूत भविष्य को रोता है
मिली नियामत जो है रब से
उस पर कर ले नाज है
यहां समय का राज है
समय है जिसका नाम है उसका
समय बिना लाचार है
समय ही तोले चरित्र, बंधन
और आचार-विचार है
यहां समय का राज है
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