गृहस्थी की इमारत के कुशल कारीगर है पिता,
तो गृह-सौन्दर्य की संवर्धक है माता।
बंध कर एक रहता है घर जिससे ,
उस ‘परवरिश का पर्याय’ है पिता ।
(स्वरचित) अनामिका जोशी “आस्था”
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